अगर कुछ कर गुजरने की चाह, लगन और जज्बा हो तो शारीरिक कमी भी किसी को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता। इसके कई उदाहरण हमारे आस-पास ही देखने को मिल जाएंगे।
रायपुर, 12 फरवरी (36गढ़ डाट इन) अगर कुछ कर गुजरने की चाह, लगन और जज्बा हो तो शारीरिक कमी भी किसी को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता। इसके कई उदाहरण हमारे आस-पास ही देखने को मिल जाएंगे।
उन्हीं में से एक हैं दसवीं कक्षा के होनहार छात्र डोमेश्वर राम निषाद, जिनकी उंगलिया हारमोनियम में पड़ते ही सुरों का जादू चलने लगता है।डोमेश्वर केवल हारमोनियम ही नहीं बल्कि तबला भी अच्छा बजा लेते हैं, उनकी गायन शैली और आवाज ऐसी है कि कोई भी झूम उठे।
पढ़ाई मे भी होशियार डोमेश्वर ने बातचीत के दौरान बताया कि उन्हें मिलाकर तीन भाईयों में से दो भाई नेत्रहीन हैं।
वर्ष 1999 में रायपुर जिले के ग्राम मठपुरैना स्थित शासकीय अंध मूक-बधिर विद्यालय में प्रवेश लिया था और अब कक्षा दसवीं में अध्ययनरत है।
मुलाकात के दौरान उन्होंने भावपूर्ण गजल ‘परदा मेरी आंखों से उठा क्यों नहीं देते’ और बस्तर अंचल की हल्बी बोली में एक सुमधुर गीत सुनाया। डोमेश्वर ने बताया कि बड़े होकर वे संगीत शिक्षक बनना चाहते हैं और संस्कृत भाषा में पारंगत होना चाहते हैं।
गायन के समय तबला वादन में पारंगत ग्यारहवीं कक्षा के नेत्रहीन मास्टर सुन्दर लाल पटेल ने संगत किया। पटेल ने बताया कि बड़े होकर वे हिन्दी विषय के शिक्षक बनना चाहते हैं। उनका कहना है, हालांकि प्रदेश सरकार आगे बढ़ने के लिए उन्हें हर तरह की सहायता दे रही है।
बारहवीं कक्षा के बाद स्नातक स्तर की पढ़ाई के लिए उन्होंने शासन से गुजारिश की है कि अंध मूक-बधिर छात्र-छात्राओं के लिए प्रदेश में एक विशेष कॉलेज की स्थापना की जाए।
दोनों छात्रों ने बताया कि उन्हें दैनिक कार्य करने के लिए किसी की सहायता की जरूरत नहीं पड़ती। उन्होंने बताया कि वे लाठी (केन) की सहायता से कहीं भी आ-जा सकते हैं।
इन बच्चों के अलावा यहां पढ़ने वाले हर बच्चे में कोई न कोई विशेषता देखी जा सकती है। यहां के मूक-बधिर बच्चों द्वारा की गई चित्रकारी को देखकर हर किसी के मुंह से ‘वाह’ निकले बिना नहीं रहता।
जब ये बच्चे अपने मन की कल्पना से चित्रकारी शुरू करते हैं तो देखने वालों को लगता है कि ये क्या आड़ी-तिरछी लकीरें हैं, पर जब चित्रकारी पूरी होती है, तो इन चित्रों में छुपे भाव दर्शक को आश्चर्य चकित कर देते हैं।
इन बच्चों को चित्रकारी सिखाने वाले शिक्षक श्री शुभेन्दु चौहान स्वयं मूक बधिर हैं और चित्रकारी में पारंगत है।
श्री चौहान ने इशारे से बताया कि यहां अध्ययनरत हर बच्चे में कोई न कोई विशेषता है। उन्होंने बताया कि कक्षा छठवीं का छात्र बप्पा राय और कक्षा आठवीं का विकास साहू बहुत ही अच्छा चित्रकारी करते हैं।
स्कूल के अधीक्षक श्री आर.के. शर्मा ने बताया कि राज्य शासन के समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित इस विद्यालय में अंध, मूक और बधिर, बच्चों के लिए कक्षा पहली से बारहवीं तक कक्षाएं लगती हैं।
स्कूल में 206 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, जिसमें से 93 बालिकाएं है। यहां कम्प्यूटर प्रशिक्षण, संगीत चित्रकारी और सिलाई प्रशिक्षण, ब्रेललिपि प्रिंटर की सुविधा सहित छात्र-छात्राओं के लिए उपयोगी गतिविधियां संचालित की जाती है।
छात्रावास में रहने वाले विद्यार्थियों को खाना, कपड़ा, पुस्तक-कापी और चिकित्सा सहित इनकी जरूरी आवश्यकताएं नि:शुल्क प्रदान की जाती है। इसके अलावा इन बच्चों को वाचक भत्ता भी दिया जाता है।
श्री शर्मा ने बताया कि इन बच्चों के लिए जितनी भी योजनाएं बनाकर शासन को भेजी जाती है, शासन से उसकी स्वीकृति मिल जाती है।
36गढ़ डाट इन