छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने मांग की है कि केन्द्र्र प्रवर्तित योजनाओं के स्थान पर राज्यों की संभावनाओं और आवष्यकताओं पर केन्द्रित विषेष योजनाएं बनायी जानी चाहिये।
रायपुर,22 अक्टूबर(36गढ़ डाट इन) छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने मांग की है कि केन्द्र्र प्रवर्तित योजनाओं के स्थान पर राज्यों की संभावनाओं और आवष्यकताओं पर केन्द्रित विषेष योजनाएं बनायी जानी चाहिये।
इसके लिये राज्यो को अधिक स्वायत्तता देते हुए नियोजन की छूट दी जानी चाहिए। मुख्यमंत्री ने यह मांग आज नई दिल्ली
में आयोजित राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में अपने लिखित भाषण में की।
मुख्यमंत्री के भाषण को राज्य के वाणिज्य कर और स्वास्थ्य मंत्री श्री अमर अग्रवाल ने पढ़ा। बैठक की अध्यक्षता
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने की।
मुख्यमंत्री ने बताया कि, राज्य को आर्थिक पिछड़ापन विरासत मिला है। 10वीं एवं 11वीं पंचवर्षीय योजनाओं में 9 प्रतिषत से अधिक विकास दर हासिल करने के बावजूद अधोसंरचना, षिक्षा एवं स्वास्थ्य के सूचकांकों में प्रदेष राष्ट्रीय औसत से
काफी पीछे है।
उन्होंने आगे बताया कि, प्रदेष का 60 प्रतिषत क्षेत्र अनुसूचित है, 56 प्रतिषत क्षेत्र वनाच्छादित है और अनुसूचित जाति, जनजाति जनसंख्या 44 प्रतिषत है। उन्होंने इस बात को प्रमुखता से प्रस्तुत किया कि उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये छत्तीसगढ़ जैसे पिछडे राज्यों को अतिरिक्त वित्तीय साधन उपलब्ध कराये जाने की आवष्यकता है।
इसके लिये खनिजों से प्राप्त आय का एक बड़ा हिस्सा राज्यों दिया जाना चाहिए, राष्ट्रीय लक्ष्य से अधिक वन क्षेत्र रखने वाले राज्यों को केन्द्र द्वारा प्रतिपूर्ति की जाए तथा थर्मल पॉवर निर्यातक राज्यों को 10 प्रतिषत मुफ्त बिजली दी जाए अथवा बिजली उत्पादन पर 4 प्रतिषत डयूटी लगाने का अधिकार दिया जाए।
बैठक में 12वीं पंचवर्षीय योजना के विकास क्षेत्रक वार भी सुझाव दिये गये। कृषि क्षेत्र के अंतर्गत मांग की गयी कि
नेषनल हॉर्टीकल्चर मिषन राज्य के सभी जिलों में लागू किया जाये।
इस क्षेत्र के संबंध में सुझाव देते हुये कहा गया कि, प्रत्येक जिले में एक कृषि महाविद्यालय खोले जाने का लक्ष्य रखा जाना चाहिये तथा आदिवासी कृषि अनुसंधान पर फोकस करने की आवष्यकता है।
आगे कहा गया कि, नदी-नालों पर एनीकट बनाकर की जाने वाली उदवहन सिंचाई परियोजनाओं को ए.आई.बी.पी. में मान्यता देते हुए ए.आई.बी.पी.योजना को व्यवहार परक और लचीला बनाते हुए माइक्रो माइनर सिंचाई का विस्तार किया जाए।
आदिवासी विकास पर विचार रखते हुए सुझाव दिये गये कि, एस.एस.ए. के तहत आश्रम स्कूलों की स्थापना को सम्मिलित
किया जाए, नक्सल प्रभावित क्षत्रों की समन्वित विकास योजना जिले के बजाय विकासखंड को इकाई मानते हुये समूचे
अनुसूचित क्षेत्र में लागू की जाये तथा कृषि फसलों की भांति सभी लघु वनोपजों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य की केन्द्रीय योजना लागू की जानी चाहिये।
षिक्षा के क्षेत्र में सुझाव दिया गया कि, सर्वषिक्षा अभियान में केन्द्र एवं राज्य का अंषदान 75:25 किया जाये, आई. आई.
टी. विहीन राज्यों में इसकी स्थापना तथा स्कूली षिक्षा को रोजगार परक बनाया जाए। अधोसंरचना विकास पर विचार
व्यक्त करते हुये जोर दे कर कहा गया कि छत्तीसगढ़ जैसे पिछडे राज्यों मे रेल तथा सड़क मार्गों के विकास में पी.पी.पी. मॉडल वायबुल नही है।
षहरी विकास के संबध में कहा गया कि छोटे एवं मझौले षहरों में मूलभूत नागरिक एवं बुनियादी सुविधाओं का बेहद अभाव है, ऐसे षहरों के लिये विषेष योजना बनाकर अतिरिक्त वित्तीय साधन उपलब्ध कराये जाने की आवष्यकता है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुझाव दिया गया कि स्वास्थ्य बीमा योजना समाज के सभी वंचित वर्गों के लिये लागू की जानी चाहिए और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में एक केंद्रीय योजना के तहत मोबाइल चिकित्सा सेवा उपलब्ध करायी जाए।
ग्रामीण विकास के संबंध में सुझाव दिया गया कि कृषि उत्पादों तथा लघु वनोपजों के लोकल वैल्यू एडिषन पर फोकस करने तथा ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न मंत्रालयों/विभागों द्वारा संचालित स्वरोजगार उपलब्ध कराने की योजनाओं का कनवर्जेन्स किया जाना चाहिए।
बैठक में राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष श्री षिवराज सिंह, मुख्य सचिव श्री पी. जॉय उम्मेन तथा प्रमुख सचिव, वित्त एवं योजना श्री अजय सिंह भी उपस्थित थे।
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